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Dow Theory डॉव थ्योरी क्या है?
Dow Theory को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ये शेयर मार्केट में कैसे काम करती है। Dow Theory कहती है कि शेयर बाजार में हमेशा तीन तरह के ट्रेंड होते हैं: प्राइमरी ट्रेंड, सेकंडरी ट्रेंड और मिनर ट्रेंड। हर ट्रेंड की अपनी एक दिशा और अवधि होती है। इस थ्योरी में यह भी बताया गया है कि शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव को समझने के लिए मार्केट के बारे में कई सिग्नल्स होते हैं जो किसी भी समय पर हमें दिखते हैं। यह सब हमें बाजार को समझने में मदद करता है।
Charles Dow ने इस थ्योरी को सबसे पहले अपने न्यूज़ पेपर में 1890 के आस-पास छापा था। उन्होंने अपनी रिसर्च से यह पाया था कि शेयर बाजार के मूवमेंट्स को समझने के लिए कुछ बेसिक पैटर्न्स होते हैं जिनसे हम सही भविष्यवाणी कर सकते हैं। आज के टाइम में भी इस थ्योरी को फॉलो करने वाले बहुत से ट्रेडर्स और इन्वेस्टर हैं।
Dow Theory के 6 मुख्य सिद्धांत
Dow Theory में कुल 6 मुख्य सिद्धांत होते हैं, जिनके आधार पर हम शेयर बाजार को समझ सकते हैं। आइए, इन्हें विस्तार से जानते हैं:
1. शेयर बाजार की प्राइस मूवमेंट सब कुछ दर्शाती है
Dow Theory के पहले सिद्धांत के अनुसार, शेयर बाजार की प्राइस मूवमेंट में सब कुछ पहले ही छिपा होता है। इसका मतलब ये है कि बाजार में होने वाली सभी घटनाएँ पहले से ही कीमतों में समाहित होती हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी कंपनी के बारे में कोई बुरी खबर आती है, जैसे कि कंपनी की माली हालत खराब हो गई है, तो उसका असर कंपनी के शेयर की कीमत पर पहले ही दिखने लगेगा। यही कारण है कि शेयर बाजार हमेशा ताजातरीन घटनाओं के बारे में पहले से जानकारी देता है। किसी भी एक्चुअल इन्फॉर्मेशन को मार्केट पहले ही प्राइस मूवमेंट के माध्यम से दर्शा देता है।
2. शेयर बाजार में तीन प्रकार के ट्रेंड होते हैं
Dow Theory का दूसरा मुख्य सिद्धांत है कि शेयर बाजार में तीन तरह के ट्रेंड होते हैं। ये ट्रेंड्स होते हैं:
- प्राइमरी ट्रेंड (Primary Trend): यह सबसे लंबा ट्रेंड होता है, जो सालों तक चल सकता है। अगर शेयर बाजार में लंबे समय तक तेजी दिखती है, तो यह एक bull market (बुल मार्केट) होता है। इसी तरह अगर बाजार में गिरावट आती है, तो यह bear market (बेयर मार्केट) कहलाता है। यह ट्रेंड 1 से लेकर कई सालों तक चल सकता है।
- सेकंडरी ट्रेंड (Secondary Trend): यह थोड़ा छोटा ट्रेंड होता है, जो कुछ हफ्तों से लेकर महीनों तक चलता है। इस ट्रेंड में बाजार में हलचल होती है और यह प्राइमरी ट्रेंड के विपरीत हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई bull market है, तो सेकंडरी ट्रेंड में गिरावट भी हो सकती है, लेकिन यह गिरावट केवल कुछ समय के लिए होती है।
- माइनर ट्रेंड (Minor Trend): यह बहुत छोटे समय के लिए होता है, जैसे कि एक दिन से लेकर कुछ हफ्तों तक। इस ट्रेंड में बहुत छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव होते हैं और इनका कोई ज्यादा महत्व नहीं होता। इनको डेली या शॉर्ट-टर्म ट्रेंड भी कहा जा सकता है।
3. ट्रेंड की दिशा जारी रहती है
Dow Theory के अनुसार, एक बार जब कोई ट्रेंड बनता है, तो वह उसी दिशा में चलता है, जब तक उसमें कोई बड़ा बदलाव न हो। यदि बाजार में तेजी (bull market) चल रही है, तो यह तब तक जारी रहती है जब तक बाजार में किसी बड़ी घटना के कारण अचानक गिरावट न आए। इसी तरह, यदि बाजार में गिरावट (bear market) आ रही है, तो वह तब तक जारी रहती है, जब तक किसी अच्छे सिग्नल से बाजार की स्थिति में सुधार न हो जाए।
4. वॉल्यूम ट्रेंड के साथ बढ़ता है
Dow Theory के अनुसार, किसी भी ट्रेंड की पुष्टि वॉल्यूम से होती है। इसका मतलब है कि जब बाजार में तेजी होती है, तो वॉल्यूम भी बढ़ना चाहिए, यानी ज्यादा लोग ट्रेड कर रहे होते हैं। वॉल्यूम का बढ़ना ट्रेंड की मजबूती को दिखाता है। अगर वॉल्यूम घटता है, तो इसका मतलब यह हो सकता है कि ट्रेंड कमजोर हो रहा है। यही कारण है कि ट्रेडर्स वॉल्यूम को बहुत ध्यान से देखते हैं।
5. ट्रेंड्स का मिलकर काम करना
Dow Theory कहती है कि Dow Jones Industrial Average (DJIA) और Dow Jones Transportation Average (DJTA) दोनों को एक साथ देखना चाहिए। जब दोनों इंडेक्स एक जैसे मूव करते हैं, तो यह एक मजबूत ट्रेंड को दर्शाता है। अगर एक इंडेक्स तेजी दिखाता है और दूसरा गिरावट, तो इसका मतलब है कि ट्रेंड में कोई कमजोरी हो सकती है।
6. ट्रेंड्स के बदलाव के संकेत
Dow Theory के अनुसार, ट्रेंड का बदलाव किसी तरह के सिग्नल्स के माध्यम से दिखाई देता है। जब एक ट्रेंड अपनी सीमा तक पहुंचता है, तो इसमें कुछ बदलाव दिखने लगता है। जब पुराने ट्रेंड का रिवर्सल होता है, तो नए ट्रेंड के शुरू होने के संकेत दिखाई देते हैं। इससे ट्रेडर्स को यह समझने में मदद मिलती है कि कब बाजार की दिशा बदल सकती है।
Dow Theory का उपयोग कैसे करें?
अब जब आप Dow Theory को अच्छे से समझ गए होंगे, तो यह जानना जरूरी है कि इसे प्रैक्टिकल में कैसे इस्तेमाल किया जाए। Dow Theory का उपयोग करने के लिए आपको शेयर बाजार की दिशा को समझना होता है। इसका मतलब है कि अगर आप लंबे समय तक निवेश करना चाहते हैं, तो आपको यह देखना होगा कि प्राइमरी ट्रेंड क्या है क्या बाजार तेजी में है या गिरावट में। अगर ट्रेंड तेजी का है, तो आप ज्यादा से ज्यादा शेयर खरीद सकते हैं, और अगर ट्रेंड गिरावट का है, तो आपको सतर्क रहना चाहिए।
इसके अलावा, वॉल्यूम को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। जब वॉल्यूम बढ़ता है, तो इसका मतलब होता है कि ट्रेंड मजबूत है, और जब वॉल्यूम घटता है, तो ट्रेंड कमजोर हो सकता है।
साथ ही, Dow Theory के सिद्धांतों को समझने के बाद, आपको ध्यान रखना होगा कि किसी भी ट्रेंड का बदलाव किसी भी समय हो सकता है। इसलिए आपको मार्केट के संकेतों को सही से समझने की जरूरत होती है।
नतीजा
Dow Theory एक बहुत ही महत्वपूर्ण टूल है, जिसे निवेशक और ट्रेडर्स शेयर बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव को समझने के लिए इस्तेमाल करते हैं। यह आपको शेयर बाजार की दिशा, ट्रेंड्स, वॉल्यूम और अन्य महत्वपूर्ण संकेतों को समझने में मदद करती है। यदि आप शेयर बाजार में निवेश करने जा रहे हैं, तो Dow Theory को समझना और फॉलो करना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।